सम्मानित अग्रणी

विशनोई महासभा
१) चौधरी भजन लालजी
२) साहिराम धारनियाँ
३) हीरालाल विशनोई
४) कुलदीप बिशनोई
५) मलखानसिंह बिशनोई


राजकारण
१) पूर्व सांसद जसमा देवी (नालवा,हरियाणा सरकार)
२) पूर्व सांसद जसवंतसिंह विशनोई (जोधपुर, राजस्थान सरकार)
३) विधायक सलील विशनोई (कानपुर, उ.प्र. सरकार)
४) विधायक अजय बिशनोई (म.प्र. सरकार)
५) पूर्व विधायक विजय्लक्ष्मी विशनोई (राजस्थान सरकार)
६) पूर्व विधायक रामनारायण विशनोई (राजस्थान सरकार)


क्रीड़ा
१) राजेश विशनोई (क्रिकेट)
२) जगदीश बिशनोई (भाला फेंक)


कॉर्पोरेट
१) श्री. पी. के. बिशनोई (सी. एम. डी., आर. आय. एन. एल.)
२) श्री. अजयकुमार बिशनोई (एम. डी., टेकप्रो)
३) श्री. शैलेश गुप्ता (एम. डी., जागरण प्रकाशन लिमिटेड.)


आय. ए. एस. / आय. पी. एस.
१) श्री. दुडाराम बिशनोई (पूर्व सांसदीय सचिव, हरियाणा सरकार)
२) श्री. लाधूरम बिशनोई (पूर्व सलाहकार, राजस्थान सरकार)
३) श्री. कृष्णलाल विशनोई (आय. पी. एस., महाराष्ट्र सरकार)
४) श्री. संदीप बिशनोई (आय. पी. एस., महाराष्ट्र सरकार)
५) श्री. कुणाल कुमार (आय. ए. एस., औरंगाबाद कलेक्टर, महाराष्ट्र सरकार)
६) श्रीमती. ममता विशनोई (एस. पी. जैसलमेर)

श्री श्रीराम जाणी

श्री श्रीराम जाणी का जन्म जिला हिसार के आदमपुर ग्राम में संवत १९३७ में हुआ था । आपके पिता का नाम श्री कान्हाराम था, जो एक क्रुषक थे । आपने भी क्रुषि-कार्य को अपनाया । बाद में आप मंडी आदमपुर में दुकानदारी करने लगे । इस मंडी को आपके पिताजी ने आबाद किया था ।

स्वतन्त्रता आन्दोलन के फलस्वरुप विशनोई समाज में भी जाग्रुति आई । विशनोई बन्धु, हिसार में एक बिशनोईमंदीर बनाने के इच्छुक थे । अखिल भारतीय विशनोई महासभा का सातवा अधिवेशन, महासभा के प्रधान श्री हरिराम की अध्यक्षता में हिसार में १९ मार्च, १९४५ को हुआ ।

उस समय स्वागत समिती के आप अध्यक्ष थे । उस अवसर पर जिला हिसार के विशनोईयों की एक मिटींग हुई । जिला सभा गठीत हुई, जिसके प्रधान श्री श्रीराम चयनित हुए । विशनोई मंदीर हिसार के निर्माण की योजना बनी और चन्दा एकत्र किया जाने लगा ।

मंदीर के लिए भुमि भी खरीद ली गई । इन कार्यों में आपकी प्रमुख भुमिका थी । विशनोई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए विशनोई सभा हिसार की ओर से सन १९५० में 'अमर-ज्योति' पत्रिका का प्रकाशन भी शुरु किया गया ।

सभा के कार्यों में व्यस्तता के कारण आप मंदीर में ही रहने लगे । उस समय आप जिला बोर्ड तथा मार्केट कमेटी के सदस्य मनोनीत हुए । जब अ. भ. बि. महासभा को मुक्तिधाम मुकाम का कार्य सौंपा गया तब आपको महासभा की ओर से कोषाध्यक्ष बनाया गया ।

आपने निज मंदीर मुकाम की मरम्मत कराई तथा पश्चिम की तरफ के मकान भी वहां रहकर बनवाये। इन्हीं के कार्यकाल में विशनोई मन्दीर ॠषिकेश भी महासभा के चार्ज में आया । 

 

स्व. रामरिख विशनोई भादु

श्री रामरिख भादु ग्राम धागड, जिला हिसार, हरियाणा के निवासी थे । उनके पिता का नाम श्री बीरबलराम था । देश की स्वतन्त्रता के लिये जब आन्दोलन चल रहा था तो आपने यौवनावस्था में ही उसमें भाग लेना शुरु कर दिया था ।

फिर आप विनोबा भावे द्वारा संचालित एवं जयप्रकाश नारायण द्वारा समर्थित सर्वोदय आन्दोलन में सम्मिलीत हो गये । जब २२ मई, १९६६ को पतरामजी सींवर, तत्कालीन प्रधान, विशनोई सभा हिसार का आकस्मिक निधन हो गया था, तब आपको सभा का प्रधान बनाया गया ।

सन १९६८ में आठ विशनोई धामों की जानकारी के लिए एक दल गठीत हुआ, जिसका नेत्रुत्व आपने किया । इस दल ने इन धामों का एक कलैंडर छपवाया जिसे धर्म-प्रेमियों ने बहुत पसंद किया ।

आप अपने गांव के समाजिक कार्यों में भी बढ-चढकर भाग लेते थे;  इस कारण ग्रामवासियों ने आपको सरपंच भी बनाया । शिक्षा का महत्त्व हमेशा रहा है परंन्तु विशनोई समाज में स्वतन्त्रता के बाद इस विषय में उत्सुकता पैदा हुई ।

नवयुवक, ग्रामांचल से निकलकर नगरों की ओर आने लगे । इस कारण हिसार में एक विशनोई छात्रावास एवं पुस्तकालय की आवश्यकता अनुभव हुई । ईन बातों को विशनोई सभा हिसार भी जानती थी ।

प्रधानजी के सद्-प्रयत्न्नों सें १८ अप्रैल सन १९६७ को श्री मनीराम गोदारा, तत्कालीन सिंचाई मन्त्री, हरियाणा द्वारा श्री वील्होजी पुस्तकालय का शिलान्यास किया गया । छात्रों की आवासीय कठीनाइयों को देखते हुए श्री जम्भेश्वर छात्रावास का निर्माण किया गया ।

आप प्रधान के भी रुप में छात्रों का हरेक कार्य, हर समय करने को तत्पर रहते थे । इसी कारण उनके समय के छात्र, जो आज भी विभीत्र सरकारी सेवाओं में रत हैं- उनको असीम क्षद्धा ओर प्रेमभाव से याद करते है ।

आपके कार्यकाल में, राजस्थान अकाल पीडीत समिती का गठन हुआ । चन्दा एकत्र किया गया तथा विशनोई समाज के महातीर्थ, जाम्भा तालाब, की खुदाई उपयुक्त समिती द्वारा करवाई गई ।

६ मार्च, १९७४ को हंसा उड गया ओर चौधरी साहब का शरीरान्त हो गया ।

 

 देश के विभाजन से आपको बडा दुख हुआ । उस समय आपने शरणार्थियों की सहायता के लिए बडा महत्त्वपुर्ण कार्य किया था । सन १९६५ में भी आपको अबोहर रिफ्युजी कैम्प का इंचार्ज बनाया गया था । अखिल भारतिय जम्भेश्वर सेवक दल की सथापना आपके प्रयतनों से हुई  । विशनोई सभा फिरोजपुर के नियम बनाकर उसे स्थाई करवाया । विशनोई मंदीर कोलायत के विवाद को आपने सुलझाया ।

 

स्व. मास्टर लाधुराम गोदारा

 स्व. श्री लाधुराम गोदारा का जन्म १५ अगस्त १९१३ को जिला हिसार के गांव गंगुवा में, चौधरी मामराज गोदारा के घर हुआ । प्राईमरी और मिडील की शिक्षा संमाप्त करके आपने सन १९४४ मे जिला लाहौर के गकखड स्थान से प्रथम क्षेणी में एस. बी. परिक्षा पास की ।

सन १९४६ में गुरु नानक पाठ्शाला, अबोहर में आपने अध्यापन कार्य शुरु किया । आपके सदगुणों से प्रभावित होकर एम. बी. हाईस्कुल के प्रधानाध्यापक ने आपको अपने स्कुल में नियुक्त किया । आपका सभी जातियों के छात्रों एवं अध्यापकों से सम व्यवहार था । आपका विवाह जालन्धर की गौरीदेवी से हुआ ।

आप हमेशा मानव मात्र की सेवा में लगे रहते थे । इस कारण आप संयुक्त पंजाब की टीचर्स युनियन के मंत्री भी मनोनीत हुए थे । आप महर्षि दयानन्द से बडे प्रभावित थे । बाल-विवाह, दहेज प्रथा और म्रुत्युभोज के आप विरुद्ध थे ।

आपका कहना था कि ''विशनोई धर्म संसार का सर्वोतम धर्म है । क्योंकी यह धर्म भेदभाव मिटाने की शिक्षा देता है ।''  आपके सहयोग सें विशनोई मंदीर अबोहर का निर्माण कार्य शुरु हुआ ।

 जब सन १९४४ में अखिल भारतीय विशनोई महासभा का अधिवेशन हुआ तो आपने इसमें पुर्ण सहयोग दिया था । जीव रक्षा विशनोई सभा की स्थापना आपके सहयोग से हुई । आपके प्रयत्नो से ही अबोहर क्षेत्र में शिकार पर प्रतिबन्ध लगा था । अबोहर को सिरसा से मिलाने वाली जी. टी. रोड को बनाने में भी आपने बडा प्रयत्न्न किया था ।

सन १९७१ में आपने सरकारी सेवा से अवकाश प्राप्त किया और म्रुत्युपर्यंन्त समाजसेवा करते रहे ।  २६ दिसम्बर, १९८० को ऐसे महान समाजसेवी और कर्मठ कार्यकर्ता का निधन हो गया ।

अम्रर शहीद बीरबलराम विशनोई

अमर शहीद बीरबल का जन्म १९४७ में गांव लोहावट, तहसील फलौदी, जिला जोधपुर राजस्थान में हुआ था । इनके पिता का नाम श्री बिड्दाराम खीचड एवं माता का नाम श्रीमती लाछां जांगु था । आपने प्राथमिक स्तर तक शिक्षा ग्रहण की । बचपन में ही आपकी रुचि विशनोई धर्म में गहन थी ।

आपकी माताजी आपको उन विशनोई विरों की कहानियां सुनाया करती थी, जिन्होंने वन्य जीवों पर दया करना एवं उनकी रक्षा करना भी है । आज के समय में वन्य जींवो की रक्षार्थ अपनी कुर्बानियां दी थी । इससे आपके मन में उन वीरों के प्रति बडी क्षद्धा थी ।

श्री गुरु जम्भेश्वर जी द्वारा बताये गये उनतीस नियमों में से एक प्रमुख नियम वन्य जीवों पर दया करना एवं उनकी रक्षा करना भी है । आज के समय में वन्य जीवों की रक्षार्थ बलिदान होने वालों में अमर शहीद बीरबल अग्रगण्य है । उनके बलिदान की घटना इस प्रकार है --

वि. सं. २०३४ मिंगसर सुदी सातम, शनिवार को बीरबल ईश्वर के ध्यान में बैठे हुए थे । इतने में ही बंदुक का खडका हुआ । बीरबल अपनी माला बीच में ही छोड्कर खड्के की ओर दौड पडे । जब वह अपने खेत की कांकड पर पहुंचे तो वहां उन्होंने देखा, एक घायल हरिण तड्फ रहा है ।

पास में ही शिकारी खडे थे । बीरबल ने उन शिकारियों से हरिण लेना चाहा । क्रुर शिकारियों ने उन्हे भी गोली मार दी । ईस प्रकार वह अनोखा वीर १७ दीसम्बर, १९७७  को शहीद हो गया । उस समय उनकी उम्र ३० वर्ष की थी ।

शहीद बीरबल अपने पिछे पत्नी, तीन पुत्रियां तथा एक पुत्र छोड गये थे । उन के पुत्र का आज सें दो वर्ष पुर्व देहान्त हो गया । बीरबल एवं हरिण के हत्यारे को माननिय न्यायाधीश श्री राजेन्द्र सक्सेना द्वारा ९ जनवरी, १९७१ को आजीवन कारावास व उसके सहयोगी को एक वर्ष के कठोर कारावास की सजा एवं जुर्माना सुनाया गया । हर वर्ष, शहीद की पुन्य तिथी पर एक शहीदी मेला लगता है ।

आज शहीद के समाधी-स्थल पर एक स्मारक बना हुआ है । धन्य है वह माता, जिसने ऐसे अमर शहीद को जन्म दिया ।

 

स्वामी रामलालजी महाराज

श्री रामलाल कडवासरा का जन्म गांव हरिपुरा पंजाब में हुआ । आपके पिता का नाम श्री हुकमाराम कडवासरा था । आपने पांच वर्ष दिवानखेडा, तीन वर्ष अबोहर, दो वर्ष फाजिलका और चार वर्ष फिरोजपुर में रहकर अपनी बी. ए. तक की शिक्षा पुरी की ।

अध्यापन के कार्य में रुचि होने के कारण आपने बी. टी. की परीक्षा भी पास की । आपने एक वर्ष तक खेती का कर्य तथा एक वर्ष तक दुकानदारी भी की ।

लेकिन आपका मन इन कार्यों में न लगा । बाद में आप ग्रामोत्थान विद्यापिठ, संगरिया के संस्थापक श्री केशवानन्द भारती के सम्पर्क में आये । इनसे आपको समाज्-सेवा की प्रेरणा मिली । आपने विशनोई समाज की सेवा का व्रत लिया । सर्वप्रथम आपने गांव रामपुर, रियासत बहावलपुर पाकिस्तान में विशनोई मंदीर का निर्माण, लोगो का सहयोग से किया ।

इसके पश्चात आपने पैत्रिक गांव में भी एक विशनोई मंदीर का निर्माण करवाया । वि. सं. १९९८ में आप समराथल धीरे आये । यहां आपने स्वामी रामप्रकाशजी को अपना गुरु बनाया । सम्वत २००० में समराथल धीरे पर आपने पीने के टैंकों की व्यवस्था की । जब आप भ्रमण करते हुए मध्य प्रदेश में गये तो आपने खातेगांव में, पटेल तुलसीराम के सहयोग से एक विशनोई मंदीर का निर्माण करवाया और एक तलाब भी बनवाया ।

सुरतगढ राजस्थान में भी आपने विशनोई मंदीर बनवाया इस मंदीर के प्रागण में एक जम्भेश्वर कान्वेंट प्राईमरी स्कुल चल रहा है । यहां अध्यापकों के निवास के लिए भी मकान हैं । ईस मंदीर की भुमि के लिए भी आपको अनेक लोंगों से संघर्ष करना पडा था ।

आज आप अपनी वॄद्धावस्था में भी तन्-मन धन से सेवा के कर्य में लगे हुए हैं । विशनोई समाज को आपसे अभी बहुत अपेक्षाएं हैं ।

 

श्री भागीरथराय विशनोई

श्री भागीरथराय विशनोई का जन्म चक तालिया, बहावलपुर रियासत पाकिस्तान में हुआ । इनके पिता का नाम श्री रामप्रताप विशनोई था, जो गांव दुतरांवली पंजाब में रहते थे । आपको सारी पढाइ अपने मामा की छत्रछाया में ही हुई ।

स्टेट हाइस्कुल बहिवालपुर से मैट्रीक करके डुंगर कौलेज, बीकानेर में प्रवेश लिया । एल्-एल बी. की परिक्षा आपने दील्ली विश्वविद्यालय से पास की । खेलकुद में भी आपकी रुचि थी । इसी कारण आप राजस्थान हाकी एसोसिएशन के, १६-१७ वर्षो तक सचिव रहे ।

आप औल इण्डीया हांकी टीम के साथ, चीफ- डी मिशन बन कर गए । आजकल आप राजस्थान फुट्बाल एसोसिएशन के चयनकर्ता बोर्ड अध्यक्ष हैं ।

अपनी पढाई पुर्ण करने पर आप १९४८ में बीकानेर रियासत में डिप्टी सुपरिटेण्डेण्ट के पद पर नियुक्त हो गये । १९५५ में प्रथम पदोत्रती पर पुलिस अधिक्षक झालावाड बने । १९७१ मेम आप डि. आइ. जी. पी. बने । सन १९७१ में आप एडीशनल आई. जी.पी. बने । आपने पुलिस विभाग का सर्वोच्च पद प्राप्त किया ।

आपाको सरकार की ओर से पुलिस मेडल एवं राषट्रपती मेडल से सम्मानित किया गया । सेवा की प्रेरणा आपको अपने चाचा स्व. श्री हरीराम बोला भु. पु. प्रधान,  अ. भा. बि. महासभा से तथा अपने ममेरे भाई श्री सहीराम धरणियां वर्तमान प्रधान, अ. भा. बि.  महासभा से मिली ।  विशनोई   समाज के लिए आपकी महत्त्वपुर्ण दे है, बीकानेर की विशाल विशनोई धर्मशाला, जिससे से प्रेरित होकर ही समपुर्ण विशनोई समाज में एक ऐसी जाग्रुत उत्पत्र हुई । है कि गत वर्षो में अनेकों गांवों शहरों में मंदीर एवं धर्मशालाएं बनाने का एक अभियान ही चल पडा है । आप १९८३ में सरकारी सेवा निव्रुति हुए ।

 

डां. हीरालाल माहेश्वरी

जहां भी विशनोई साहित्य का नाम आता है, वहां डां. हीरालाल माहेश्वरी का नाम स्वत; ही आ जाता है । डां. हीरालाल माहेश्वरी के शोध प्रबन्ध 'जाम्भोजी, विष्णोई सम्प्रदाय और साहित्य' लिखने से साहित्यिक क्षेत्र में एक क्रांतीकारी परिवर्तन आया । अन्य लोंगों कें मनों में, विशनोई धर्म एवं विशनोई समाज के विषय में जो पुर्वाग्रह तथा भ्रातियां थी, वे भी दुर हुई ।

डां. माहेश्वरी के पिता का नाम श्री गोपालचन्द जी माहेश्वरी था । आपका जन्म श्री गंगानगर में हुआ था और प्रारम्भिक शिक्षा भी आपने यहीं से प्राप्त की । वर्तमान में आप राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं ।

कुछ समय तक आप राजस्थान विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रहे । आपने एम. ए; एल. एल. बी; डी. फिल; डी. लिट. तक शिक्षा ग्रहण की । 'राजस्थानी भाषा और साहित्य'  सवंत १५००-१६५० के लिए कलकता विश्वविद्यालय ने आपको डी. फिल. की उपाधि प्रदान की ।

'जाम्भोजी, विषणोई सम्प्रदाय और साहित्य'  के लिए राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर ने आपको डी. लिट. की उपाधी प्रदान की । इस पुस्तक के लिए उतर प्रदेश सरकार ने आपकी विशेष तुलसी पुरस्कार प्रदान किया ।

इनके अतिरिक्त अखिल भारतीय विशनोई महासभा, विशनोई सभा हिसार एवं अखिल भारतिय सेवक दल अबोहर ने भी आपको इस शोध के लिए सम्मानित किया ।

विशनोई समाज के विषय में शोध करने को आपको स्वर्गीय श्री महीरामजी धारणियां ने प्रेरित किया था । उन्होंने ही जगह्-जगह घुमकर दुर्लभ हस्तलिखित ग्रंथ संग्रहीत किये थे, जो बाद में डां. माहेश्वरी के शोध का आधार बने । आपने अंग्रेजी में 'राजस्थानी भाषा का इतिहास' नामक पुस्तक लिखी । आपने 'जाम्भोजी भारतीय साहित्य के निर्माता' नामक मोनोग्राफ पुस्तक लिखा, जो लोंगों  द्वारा बहुत पसंद किया गया । आपने 'जाम्भोजी की सब्द वाणी' मुल एवं टीका तथा 'मेहोजी कृत रामायण' मुल एवं टीका नामक दो पुस्तके भी लिखी है ।

 

 


युगपुरूश चौधरी मनीराम गोदारा


चौधरी मनीराम गोदारा पूर्व- गृहमंत्री,हरियाणा का जन्म मास नवम्बर 1923 में गांव बडोपल वर्तमान जिला फतेहाबाद में हुआ था । इनके पिता का नाम चौधरी रामजस गोदारा तथा दादा का नाम चौधरी उदाराम गोदारा था । इनके पूर्वज मूलवासी भढाण क्षेत्र वर्तमान तहसील लूणकरणसर जिहा बिकानेर राजस्थान) में स्थित गांव उदाणा के थे । इनकी नन्हाल गांव संगरिया वर्तमान जिलाहनुमानगढ में थी, इनके नाना का नाम चौधरी रामरी धारणिया था ।
चौधरी मनीराम गोदारा की प्रारम्भिक षिक्षा डी.बी. प्राइमरी स्कूल बडोपल, जाट एंगलो वैदिक मिडल स्कूल वर्तमान ग्रामोत्थान विदयापीठ) संगरिया , पी.एन.हाई स्कूल वर्तमान हरजीराम हाई स्कूल) हिसार से 1942 में मैट्र्कि पास करके डी.ए.वी. कालिज लाहौर में प्रवेष लिया । लाहौर में जिला हिसार से पढने वाले आप पहले बिशनोईथे । ईष्वर की कृपा से आपके पास धन की कोई कमी नहीं है इसलिये आपको राजनीति में षामील होना चाहिये ताकि बिशनोईसमाज में चेतना आये, बिशनोईगांवों मं स्कूल खोले जायें और पढे लिखे युवकों को नौकरियां दिलावें जिससे समाज की तरक्की होगी । चौधरी मनीराम गोदारा ने वर्श 1948 में षिमला से बी.ए. पास किया। वर्श 1949 में सहायक अधीक्षक जेल चयनित हुए और उसी वर्श ट्र्ेनिंग कर ली । वर्श 1950 में पाकिस्तान ने भारत को युदध की धमकी दे दी जिस पर राज्य सरकार ने सिविल डिफैन्स का महकमा चालू किया जिसमें चौधरी मनीराम गोदार को इन्स्ट्र्ेक्टर नियुक्त किया परन्तु इसी वर्श मास जुलाई में पद से त्याग पत्र देकर पुनःराजनीति में षामिल हो गये ।
वर्श 1952 में पंजाब विधान सभा के लयिे आम चुनाव पहली बार हुआ । चौधरी मनीराम गोदार फतेहाबाद डबल मेम्बर हल्का से कांग्रेस टिकट के लिये आवेदन पत्र दिया । बिना पूर्व अनुभव के टिकट प्राप्ति हेतु अकेले को ही बडा सघंर्श करना पडा । तब कांग्रेस पार्लियामेन्ट्र्ी बोर्ड की एक उप समिति अन्तिम निर्णय करती थी जिसके तीन सदस्य पण्डित जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आजाद और बाबू पुरूशोतमदास टण्डन थे । नेहरूजी ने कहा कि यह उम्मीदवार नया है परन्तू नौजवान और अच्छा षिक्षित है- इसी आधार पर गोदारा साहिब को टिकट मिल गया । परन्तू निर्वाचन अधिकारी ने उनका नामांकन पत्र इस आधार पर नामंजूर कर दिया कि वह लाभ के पद का अधिकारी है जबकि वह सहायक अधीक्षक जेल का उम्मादवार था । इस निर्णय के विरूदध गोदार साहिब ने चुनाव साचिका दायर की जो स्वीकार हुई और मई 1956 में उप चुनाव में देष भर में सब से ज्यादा मतों का रिकार्ड स्थापित करते हुऐ देषभर के बिश्नोईयों में पहला विधायक बने ।
मार्च 1971 मे संसद लोकसभा) के चुनाव में चौधरी मनीराम गोदार हरियाणा भर की जनरल सीटों में सबसे ज्यादा मत लेकर कामयाब हुऐ । आप भारत भर के बिशनोईसमाज में पहले बिशनोईथे जो सांसद बने वर्श 1980 का संसदीय चुनाव आप हार गये , फिर दिसम्बर, 1983 में हल्का फतेहाबाद से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर तथा 1991 में हीरयाणा विकास पार्टी की तरफ से चुनााव हार गये परन्तु 1996 में हरियाणा विकास पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर विजयी घोशित हुए और हरियाणा के गृहमंत्री बने ।
चौधरी मनीराम गोदार पहले बिर्ष्नोए हैं जिन्होंने राजनीति में अपने बलबूते पर स्थान बनाया । चौधरी देवीलाल षारीरिक रूप् से लम्बे-चौडे थे और उस समय के अन्य नेता उनसे भय खाया करते थे । गोदार साहिब के काग्रंेस में आने के बाद सभी कागेंसी निर्भय हो गये ।
चौधरी मनीराम गोदार ने राजनीति के अलावा समाज सेवा,षिक्षा,धर्म,बिष्नाई समाज के संगठनों,मेलों मन्दिरों,बिष्नाई छात्रों,मुसीबत में फंसे लोगों को तरह से सहयोग पहुंचाया ।
साम्प्रदायिक उपद्रवों के कारण लाहौर के सभी षिक्षण संस्थान अनिष्चित काल के लिये बन्द कर दिये जाने पर चौधरी मनीराम गोदार लाहौर से अपने गांव बडोपल आ गये । लाहौर के निकटवर्ती गांव राजगढ के मुसलमानों ने निकट लगते कृश्ण नगर और सन्त नगर को खतम करने की योजना बनाई जिसकी सूचना मिलने पर चौधरी मनीराम गोदार के साथियों ने उनके पास बडोपल तार दे लाहौर बुलाया जिस पर वह लाहौर पहुंच गये । मुसलमानों व्दारा हमला करने से पहले ही गोदारा साहिब ने अपने साथियों को लेकर उन्हें राजगढ में हमेषा के लिये ठण्डा कर दिया । उसके बाद वह अपने गांव बडोपल लौट आये ।
बडोपल में थे तब जिला हिसार में भी हिन्दु-मुसलमान साम्प्रदायिक फसादात षुरू हो गये। गांव लालवास व उनके आस-पास के तमाम गांव (केवल गांव रत्ताखेडा को छोडकर) मुसलमानों की आबादी वाले थे अतः लालवास और रत्ताखेडा के बिश्नोई-जन व अन्य हिन्दू-सिख वहां सेअपने जीवन की सुरक्षा हेतु पलायन करके अपने-अपने रिष्तेदारों के पास हिन्दू-सिख क्षेत्र में रहने लगे। चौधरी मनीराम गोदारा के दादेर ससुर आदि बडोपल आ गये। उनके दादेर ससुर चौधरी बीरबल जी ढूकिया के पास लाइसेन्स की बन्दूक थी परत्नु कारतूस केवल 20 ही थे। अतःचौधरी मनीराम गोदारा वह बन्दूक और लाइसेन्स लेकर हिसार अपनी साइकल पर गये ताकि वहां से कारतूस खरीद कर ला सके। साम्प्रादायिक उपद्रवों के कारण उन दिनों बसें नहीं चलती थीं। हिसार से लौटते समय उन्होंने गांव अग्रोहा में देखा कि सडक के उत्तरी भाग के डोगर मुसलमान सडक के दक्षिण भाग के हिन्दुओ ंपर हावी हो रहे हैं। चौधरी मनीराम गोदारा ने डोगर मुसलमानों से मुकाबला करना षूरू कर दिया । वह खुल्ले में थे अतःसोचा कि निकटवर्ती खेजडा वृक्ष की ओट ली जावे। वह टेडा-टेडा चलकर खेजडा की ओर जा रहे थे कि टोपीदार बन्दूक की गोली उनके दायें हाथ पर लगी जो हड्डी को पार करके पेट पर लगी। उन्होंने पेट के उस हिस्सा पर दबाव देकर गोली बाहर निकाल दी। फिर एक आदमी ने उनको अपनी घोडी पर गांव लांधडी में उनके सम्बन्धी चौधरी सोहनलाल जी जोहर के पास पहुंचाया जिन्होंने तुरन्त ही अपनी कार पर उन्हें हिसार में डाक्टर राजेन्द्रनाथ के पास उपचार हेतु पहुंचाया ।
चौधरी मनीराम गोदारा की गुरू जब्मेष्वर भगवान और बिशनोईधर्म में पूरी आस्था थी। श्री मुक्तिधाम मन्दिरपर फाल्गुण मेला के आवसर पर वर्श 1950 से जाना षुरू किया था और कई मेलों पर गये थे। पहले बाजार पुराने निज मन्दिर के सामने से लगना षुरू होता था। काफी गुण्डागर्दी हुआ करती थी। वर्श 1955 में वहां हुए अधिवेषन के समय असामाजिक तत्वों की पीटाई की गई, उसके बाद पूर्ण अनुषासन स्थापित हो गया। मुकाम की प्राचीन पंचायत उसके पंचो की आपसी फुट के कारण वर्श 1954 में समाप्त हा ेजाने पर मेला, समाधि मन्दिर और संगठन महासभा के आधीन 1955 में कराये जिसके लिये वहां आठवां अधिवेषन किया गया जिसकी स्वागत समिती के अध्यक्ष गोदारा साहिब थे। महासभा का सातवां अधिवेषन मार्च 1945 में हिसार में सम्पन्न हुआ था। उसकी तय्यारी के लिये देवी भवन हिसार के प्रांगण में जिला हिसार के बिश्नोईयों की मीटींग बुलाई थी जिसमें षामिल होने के लिये गोदारा साहिब लाहौर से आये थे।
चौधरी मनीराम गोदारा स्वभाव से मुहंफट और न्दचतमकपबजंइसम थे। न कभी झूठा वायदा किया या गलत काम के लिये कभी हां कही जिस काम के लिये हां कही वह पूरा किया इसलिये लोग करते थे कि गोदारा साहिब ने हां कह दी है, काम अवष्य हो जावेगा। वर्श 1951 से इलाका के मुजारों के अधिकारों हेतु लडना षुरू किया था, दरजनों गांवो के मुजारो को हकूक मलकियत दिलवाये। उन्होंने कभी गुंडों की सरपरसती नहीं की, न कभी सहयोग दिया और न कभी मुंह लगायां ।
चौधरी मनीराम गोदारा ने वर्श 2008 में अपने गांव नीमडी में रहना षुरू कर दिया था। उन्हें गत पन्द्रह वर्शो में बडे दुःख देखने पडे-पहले तो छोटे पुत्र लोकराज का देहान्त हो गया जिसे उन्होंने अपने राजनैतिक उत्तराधिकारी के तौर पर तैयार किया था, उसके बाद बडे पुत्र पृथ्वीराज का देहान्त हो गया और उसके बाद बडे पौत्र सुनील कुमार का देहान्त हो गया। इन तीनों की मृत्यु का ही परिणाम था कि गोदारा साहिब को हृदयरोग हो गया और दिनांक 15 जून, 2009 (सोमवार) को अपने गांव मे ही प्रातः 7 बजे हृ दय गति रूक जाने से उनका स्वर्गवास हो गया। वह अपने पीछे पत्नी, तीन बेटीयां, तीन पौते छोड गये हैं। उनका अन्तिम संस्कार बिशनोईसमाज के रिवाज अनुसार गांव नीमडी में राजकिय सम्मान के साथ सायं 7 बजे किया गया जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री पूर्व चौधरी भजनलाल जी, पूर्व वित्तमंत्री प्रोफेसर सम्पत सिंह, संसदीय सचिव चौधरी दुडाराम, पूर्व विधायक श्री बलबीर सिंह चौधरी, सी.पी.एम. नेता कामरेड कृश्ण स्वरूप, डिप्टी कमिष्नर श्री सी.वी. राजनाथ थारू, पुलिस अधीक्षक श्री सी.एस.रा. हिसार नगर से उनके काफी मित्रगण एवं सहयोगी तथा हजारों लोग षामिल हुए।

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