जिवरक्षा सभा

श्री गुरूजम्भेष्वर भगवान व्दारा बताये गये नियम जीव दया पालणी, रूख लीलो नीं घावैं को प्रत्येक विशनोई के अपने जीवन मे धारणकिया है। इसके लिए बिशनोईयों ने अनेक कश्ट सहे हैं और आत्मबलिदान तक दिये।
रियासत बहावलपुर के नवाब के मामा ने एक बार काले हिरणों का षिकार करने का प्रयत्न किया । वे बिशनोईयों खेत थे, जहां एकविशनोई वीरगंगा काम कर रही थी। उसने अपने धर्म-नियमों को मुख्य मानते हुए, बिना राजदण्ड की परवाह किये, नवाब ने
बिशनोईयों पवर मुकद्दमे चलाये वापिस लिए। नवाब ने बिशनोईगांवो में षिकार खेलने एवं हरे वृक्ष काटने की मनाही के पट्टे भी उन्हेदिये। उपर्युक्त घटना स्वतंत्रता से पुर्व की है, परन्तु स्वतंत्रता के बाद भी वृक्षों को कटान एवं जीवों का षिकार होता रहा है। इसलिए बिशनोईधर्म बन्धुओ ने सन 1966 में षिकार निरोधक कमेटी का गठन किया। इसका कार्यक्षेत्र अबोहर के आस-पास के बिशनोईगांवोतक ही सीमीत था और इसके मुख्य सदस्य थे स्व मास्टर लाघूराम गोदारा, मा. गोपीराम सुथार, स्व. रणजीतराम डेलू खैरपुर, स्व.रामजीलाल गोदारा सीतो एवं संतकुमारजी राहड दुतरांवाली।
इस कमेटी ने एक पुलिस अधिकारी के विरूध्द पंजाब हाईकोर्ट तक मुकदमा लडा क्योंकि इसने मुक्तक्षेत्र मे षिकार किया थां इसमुकदमे की वजह से षिकार निरोधक कमेटी काफी प्रषंसा हुई। कमेटी के कार्यक्षेत्र मे काफी विस्तार हुआ । अब कमेटी का कार्यक्षेत्रपंजाब, हरियाणा और राजस्थान तक फैल गया।
सन 1947 में कमेटी के स्थान पर जीव रक्षा सभा की और इसका प्रथम संयोजक संतकुमारजी राहड को बनाया गया।
8 फरवरी, 1947 को गांव रायपुर में दिन-दिहाडे राजाराम नागपालषिकारी ने हिंरणो और मोरों पर गोलिया चलाई। एक गोली गरीबलुहार की बच्ची को बी लगी। समाज के अन्य प्रमुख व्यक्तियो एवं संयोजक महोदय ने तुरन्त कार्यवाही की और इस घटना कीपुलिस में सुचना दी।
जब पुलिस भी निश्क्रीय रही तो जलसे-जुलुस करके सभा को आन्दोलन का रस्ता अपनाना पडा। जब लनभावना जाग्रत हुई तों जनआक्रोष अपनी चरम सीमा पर चहुंच गयां। नागपाल को झुकना पडा। वह श्री बिशनोईमंदिर अबोहर में आया। उसने सबके सामने
क्षमा मांगीं हवन करके फिर कभी षिकार न करने का उसने प्रण किया। चौण के लिए 125/- रूपये सभा को दिये।
15 जनवरी, 1976 को इस सभा को अखिल भरतिय जीव रक्षा बिशनोईसभा का स्वरूप् दिया गया और इसं पंजाब सरकारने से नं 211 पर पंजीकृत करवाया गया। यह सभा जीवों वृक्षों की रक्षा के लिए गठित की गई थी।
यह सभा केवल बिश्नोईयों की ही नहीं बल्कि उन सभी षाकाहारी बन्धुओं की संस्था हैं, जो ईन नियमों को मानते हैं कि, यदि वननहि रहेंगे और यदिवन्य प्राणी नही रहेंगे तो मानव नहीं रहेगा और यदि मानव नही रहेगा तो कुछ भी नहीं रहेगा तथा प्राकृतिकसंतुलन बिगड जायेगा।
22 से 2 नवम्बर, 1975 को श्री महावीर स्वामी की स्मृति में पांचवा विष्व सर्व धर्म सम्मेलन दिल्ली में हुआ। इसमें भी अ.भा.जी.र.बि. के प्रधान पहुंचे । आपने श्री गुरू जम्भेष्वर व्दारा बताये नियमों की व्याख्या की और वृक्षो व वन्य जीवों के लिए बिशनोईयों केबलिदान का उल्लेख भी किया।
उस बात की उपस्थित जनसमूह ने भूरि-भुरि प्रषंसा की। इस प्रकार सभा ने जीव रक्षा का प्रचार एवं संदेष अन्य धर्मो तक भीपहुंचाया।
17 दिसम्बर, 1977 को लोहावट जिला जोधपुर मे श्री. बीरबलराम खीचड एक हिरणी की जान बचाते हुए, एक क्रुर षिकारीकी गोलीसे षहीद हो गये। इस साहसिक बलिदान की सुचना मिलते ही सभा के प्रधान सभा के इकठ्ठे हुए। सभा की तरफ से षहीद
की विधवा की आर्थिक सहायता भी की गई।
श्री देवेन्द्रकुमार पूनिया ने षहिद की बेटी को एक सिलाई मषीन भी भेंट कीं षिकारीयों
के विरूध्द मुकदमा दर्ज करवा कर इसकी पैरवी की व्यवस्था सभा ने कीं षहीद की स्मृति में स्मारक बनाया गया। आज वहां हर
वर्श षहिद की पुण्य तिथि पर मेला लगता हैं।
सभा के प्रधान खेजडली गांव भी गये। यहां पर वि. सं 1787 में 363 बिशनोईस्त्री-पुरूशों ने खेजडी के रक्षार्थं आत्म-बलिदान दिया
था। अलिदान की तिथि भादों सुदी दसमी को प्रथम मेले के आयोजन की घोषणा की गई। सभा के प्रयासोच से ही यह प्रथम षहीदीमेला पावन धाम खेजडली पर 12 सितंम्बर, 1978 को आयोजित किया गया।
इसका जिक्र आकाषवाणी एवं समाचार पत्रों में भी हुआ था। इस कार्य में श्री रामसिंह बिशनोईविधायक लूणी क्षेत्र व श्री बुधराम
सरपंच पल्ली का सहयोग प्रषंसनीय रहा। इस महाबलिदान में षहीद 363 स्त्री-पुरूशों के नामों की सुची को एक पुस्तिकाके रूप मेंप्रकाषित करवाया गया।
सन 1980 में होली के दिन गांव मेहराना (पंजाब) के खेतों में षिकारियों ने हिरणों पर गोली चलाई और एक काले हिरण को मारलिया। उस समय खेतो मे एक बहादुर वीरांगना श्रीमती षारदादेवी बिशनोईघास काट रही थी। वह भागकर हिरण के पास गई
उस पर लेट गई।
उसने षिकारीयों के हाथों पर घास काटने वाली दांती से वार किया उनसे बंदुके छीन लीं इतने में अन्य पडौसी आगये। उनके सहयोग से षिकारी पकडे गये। इस साहसी महिला को सभा की और से उचित सम्मान दिया और एक सिलाई मषीनमुकाम मेले के अवसर पर भेंट की गई।
इससे भी आगे, जीव रक्षा एवं जीव-दया के सैकडों उदाहरण बिशनोईसमाज में समाज बिखरे पडे है। श्रीमती रामीदेवी बिशनोईने तोअपना दूध एक हिरणी के बच्चे को पिलाया था। घटना यों है- श्रीमती रामीदेवी बिशनोईअपने खेतो में काम कर रही थी। उस समयएकहिरणी भागती हुई उसके पास आई, जिसके पीछे कुत्ते लगे हुऐ थे।
हिरणी ने एक बच्चे को जन्म दिया और अपने प्राण त्याग दिये। श्रीमीत रामीदेवी बिशनोईअसमंजस में पड कि हिरणी के बच्चे काक्या करे? अन्ततः उसने अपना स्तनपान करवा कर उस बच्चे को बड किया। ममता का ऐसा अनोखा उदाहरण विष्व में अन्यत्र कहीदेखने को नहीं मिलता।
सन 1978 में सऊदी अरब का षहजादा बदर गोडावण पक्षी के षिकार के लिए रामगढ, जिला जैसलमेर (राज) में पहुंचा । आस-पासके बिशनोईयों ने इस बात का विरोध किया। उन्होंने सभाएं की, जुलूस निकाले और दिल्ली में भी विदेष मंत्री की कोठी के सामनेप्रदर्षन किया। अन्ततः वीर विशनोईयों ने सुरक्षाबल के घेरे को तोड दिया और प्रिंस बंदर के कैप्म में दाखिल हो गये। प्रिंस को बिनाषिकार वापस जाना पडा। कितना अधिक प्यार और साहस दिखाया वनय प्राण्यिों के प्रति बिशनोईयों ने । इस कार्य में भी सभा नेअपनी महती भूमिका अदा की।
सन 1978 में ही भारतीय सेना के एक लेफ्टीनेंट कर्नल ने गांव दुतरांवाली (पंजाब में तीतरों का षिकाार कर लिया। सभा ने सेना
के उच्च अधिकारियों एवं प्रतिरक्षा मन्त्रालय ने सैनिको को बिशनोईक्षेत्रो मे षिकार न खेलने की हिदायत दी। ऐसी ही एक अन्यघटना सन् 1978 में अबोहर में घटी। अबोहर के एक दर्जी ने एक हिरणी एक कसाई को बेच दी।
संयोगवष वहां हिम्मतपुरा के श्री. बीरबलराम बिशनोईखडे थे। उन्होंने उस हिरणी को खरीदना चाहा परन्तु कसाई ने हिरणी बेचने सेइंकार कर दिया। सभा को जब इस बात का पता लगा तो उसने तुरन्त पुलिस कार्यवाही करके हिरणी की जान बचाई।
जीव रक्षा एवं वन्य रक्षा में अन्य समाजों के लोग भी तत्पर रहने लगे हैं। इसका उदाहरण हमें गांव भूत नकला, जिला हिसार (हरियाणा) के श्री केहरसिंह जाट के बलिदान में मिलता है। श्री केहरसिंह जाट ने षिकारियों से जूझते हुए अपना बलिदान दिया। जब
अ.भा.जी.र.बि. सभा को इस षहादत का पता चला तो प्रधान जी वहॉं अपने सहयोगियो के साथ पहुॅंचे । षहीद को श्रंध्दांजली
अर्पित की गई। सभा ने पूर्ण सहयोग दिया तथा गॉंव की और से भी कुछ चंदा इकट्ठा किया गया। षहीद की स्मृति में षहीद-स्मृति-स्तम्भ बनाने पर विचार हुआ, षिकारीयों के खिलाफ मुकद्दमा भी लडा गया।
नवम्बर, 1983 में कृशि वि.वि. लुधियाना में एक दो दिन का सेमीनर हुआ, जिसका विषय था ‘अबोहर क्षेत्र में काले हिरण औरबिशनोईसमाज’। इस सेमीनर में अ.भा.जी.र.बि सभाका प्रतिनीधी मण्डल भी गया। इस सेमीनार में प्रधानजी एक सार-गर्भित भाषण‘वन्य जीवों के लिए बिशनोईयों का बलिदान’ विषय पर दिया, जिसकी चर्चा अनेक समाचार-पत्रों मे हुई।
वन्य प्राणियों के संरक्षण एवं पेडों की रक्षार्थ अ.भा.जी.र.बि. सभा प्रयत्नषील हैं। पेडों की रक्षा एवं वन्य-संरक्षण से ही बिशनोईयों
समाज का नाम आन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर उभर कर आया है। ओर इस सभा का भी यह कार्य है कि वह बिशनोईसमाज के इस
उज्ज्वल पक्ष को और उजागर करे। आज सभा के अनेक आजीवन सदस्य बन गये हैं और सभा का कार्यक्षेत्र अब सारे देष मे फैलगया ह। अषा है, यह सभा उन्नति के पथ पर अग्रेसर होती रहेगी।

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