29 धर्म

 

उन्नतिस धर्म की आखड़ी, हिरदे धारियो जोय |
जाम्भे जी किरपा करी, नाम विशनोई होय ||

 

पहिला धर्म ।
मुल : प्रात : स्नानं समाचरेत् ॥ १ ॥ अर्थ : सब जनो को प्रातःकाल स्नान करना चाहिये ॥ १ ॥

दुसरा धर्म ।
मुल : शील शौच सन्तोषादय: प्रतिपाल्या: ॥ २ ॥ भाषार्थ : सदैव सब मनुष्यों को शील शौच सन्तोष आदि सव्रोत्तम नियमों का पालन करना चाहिये । शौच दो प्रकार का महर्षि लोगों ने माना है ॥ २ ॥

तीसरा धर्म ।
मुल : उभय कालिकं सन्ध्योपासनमवश्यं कार्य्यम ॥ ३ ॥ अर्थ : दोनों काल की सन्ध्या अवश्य करना चाहिये ॥ ३ ॥ और जो द्विज सन्ध्या नहीं करता वह शुद्र है

चौथा धर्म ।
मुल : सायंकाले इश्वर गुणाश्चिन्तनीया : ॥ ४ ॥ अर्थ : सायडकाल में इश्वर के गुणों का चिन्तन करना चहिये ॥ ४ ॥

पांचवां धर्म ।
मुल : अग्नि होत्रं जुहुयात स्वर्ग कामः ॥ ५ ॥ अर्थ : धर्म अर्थ काम मोक्षादि चार फलों की प्राप्ति के लिये सब लोगों को हवन अवश्य करना चाहिये ॥ ५ ॥

छठवां धर्म ।
मुल : सत्यं वदेत ॥ ६ ॥ अर्थ : सब मनुष्यों को सत्य भाषण अवश्य करना चाहिये ॥ ६ ॥

सात्तवां धर्म ।
मुल : वस्त्रपुतं जलं पिवेत् ॥ ७ ॥ अर्थ : वस्त्र से छान कर जल व दुध को सब मनुष्यों को पीना चाहिये ॥ ७ ॥

आठवां धर्म ।
मुल : वैद्या पाकशालादि स्थानैषु स्वच्छी भुत्तोस्समिधा प्रज्वम्ल्या: ॥ ८ ॥ अर्थ : यज्ञ करने को अथवा भोजन बनाने को जो लकडी छाणा कन्डा उठा जाव तो प्रथम उसको भले प्रकार से हिलावै झिडकावै तांकि उस के भितर के बीच जन्तु बाहर निकल जायै पीछै उसमें अग्नि लगनी चाहिये ॥ ८ ॥

नवां धर्म ।
मुल : परेणापक्रुडतेपि क्षमावांस्तत्र भुयात् ॥ ९ ॥ अर्थ : निन्दास्तुति मानापमान का सहन करके सब मनुष्यो को सदैव ब में हि वर्ताना चाहिये ॥ ९ ॥

दशवां धर्म ।
मुल : जीवेषु दयां कुर्य्यात ॥ १० ॥ अर्थ : जीवों पर दया करनी चाहिये ॥ १० ॥

ग्यारहवां धर्म ।
मुल : चौर्य्यं न समाचरेत ॥ ११ ॥ अर्थ : किसी की चोरि नही करनी चाहिये ॥ ११ ॥

बारहवा धर्म ।
मुल : निन्दान्न कुर्य्यात् ॥ १२ ॥ अर्थ : किसी की निन्दा न करनी चाहिये ॥ १२ ॥

तेरहवा धर्म ।
मुल : मिथ्या भाषणविवाद्त्र्च न कुर्य्यात्केनचित्सह ॥ १३ ॥ अर्थ : मिथ्या भाषण और वे प्रयोजन विवाद कभी न करना चाहिये ॥ १३ ॥

चौदहवां धर्म ।
मुल : अमावास्यायामन्तः करण शुद्धियर्थम्ब्रतं समाचरेत् ॥ १४ ॥ अर्थ : अमावास्या के दिन अन्तःकरन की शुद्धि के लिये उपवास करना चाहिये ॥ १४ ॥

पन्द्रहवा धर्म ।
मुल : सर्व व्यापक परमात्मा न: विष्णु: सेवा कर्तव्या ॥ १५ ॥ अर्थ : सब मनुष्यों को सर्वत्र व्यापक परमात्मा विष्यु की नित्य सेवा करनी चाहिये ॥ १५ ॥

सोलहवां धर्म ।
मुल : सुपात्रेषु दानं दातव्यम् ॥ १६ ॥ अर्थ : सब मनुष्यों को चाहिये कि परमानन्द की प्राप्ति और कारण सहित अनर्थ की निबृति के लिये सुपात्र पुरुषों को सदा सुवर्ण आदि उत्तम पदार्थों का दान दिया करें ॥ १६ ॥

सत्रहवां धर्म ।
मुल : हरित वृक्षा: नोछेद्दा:॥ १७ ॥ अर्थ : हरे वृक्षों को कभी किसी बिशनोईजन को नहीं काटना चाहिये॥ १७ ॥

अठारहवां धर्म ।
मुल : काम क्रोध लोभ मोहाद्दजर शत्रवः सर्व प्रकारेण जेतव्य ॥ १८ ॥ अर्थ : काम क्रोध लोभ और मोह आदि अजर शत्रुओं को जरजरी भुत अर्थात् सब प्रकार से मर्द्द न करना चाहिये ॥ १८ ॥

उन्नीसवां धर्म ।
मुल : यस्य पहलाद्दुतम संस्कारो नाभुतस्य ह्स्ताभ्यात्र्जलमन्नंत्र्च न खादेत् ॥ १९ ॥ अर्थ : जिसका पाहल आदि उत्तम संस्कार न हुवा हो उसके हाथ का अन्न तथा जल तक न खाना पीना चाहिये ॥ १९ ॥

बीसवां धर्म ।
मुल : अजाऽविकादयः परोपकारिणः पशवःरक्षितव्या: ॥ २० ॥ अर्थ : बकरी भेड़ आदि परोपकारी पशुओं की रक्षा करनी चाहिये ॥ २० ॥

इक्कीसवां धर्म ।
मुल : बृषा: न म्रर्दितव्या: ॥ २१ ॥ अर्थ : बैल को नपुसक न करना और न किसी दुसरे से न करना चाहिये ॥ २१ ॥

बाईसवा धर्म ।
मुल : अहिफेनं न भक्षणीयम् ॥ २२ ॥ अर्थ : अफीम न खाना चाहिये ॥ २२ ॥

तेईसवां धर्म ।
मुल : तमाको: पानं न कर्त्तव्यम् ॥ २३ ॥ अर्थ : तमाखु न पीना चाहिये ॥ २३ ॥

चौबीसवां धर्म ।
मुल : भ--या: पानं न कुर्य्यात् ॥ २४ ॥ अर्थ : भांग न पीना चाहिये ॥ २४ ॥

पच्चीसवां धर्म ।
मुल : मद्दं न पिवेत् ॥ २५ ॥ अर्थ : मद्द पान कभी न करना चाहिये ॥ २५ ॥

छ्ब्बीसवां धर्म ।
मुल : मांसं न भक्षयेत ॥ २६ ॥ अर्थ : मांस किसी को न खाना चाहिये ॥ २६ ॥

सत्ताईसवा धर्म ।
मुल : नीलं बस्त्रं न धारयेत् ॥ २७ ॥ अर्थ : नील बस्त्र धारन न करना चाहिये ॥ २७ ॥

अठाईसवां धर्म ।
मुल : एक मासं पर्यतम्प्रासुता स्त्री गृह्स्थ सर्व कार्य्येभ्य प्रथक भुयात ॥ २८ ॥ अर्थ : तीस दिन तक प्रसुता स्त्री को गृह के सब काम करने का अधिकार नहीं है क्योंकि गर्भ के मेल से स्त्री का उदर पूर्ण होता है| उसकी शुद्धि तीस दिन से पहले नही हो सकती| एक मास में सारामाल बाहर हो जाता है, उसी काल संस्कार करा कर गृह कार्यो में प्रवृत करे यह विषय पूरा हुवा ||२८||

उनतीसवा धर्म |
मूल : पच्चदिनवधि कृतवारजस्वला सर्व | गृह कर्येभ्य पृथक भवितुमरहा ||२९|| अर्थ : पाँच दिन तक रजस्वला स्त्री के सब कामों से पृथक रहें ||२९||

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