भजन

भजन १
आओनी म्हारी जागण में समराथल रा जम्भाजी
समराथल आपरा संग में लाज्यो जाम्भजी
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। टेर ।।

समराथल रे धीरे ऊपर जागण जोर रचायोजी
आलमजी सालमजी जागण दीन्हो सतगुरू जाम्भाजी।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। १ ।।

बाजेजी भगत रो थेतो यज्ञ सम्पूर्ण करियोजी,
बाजेजी भगत रे जागण दीन्हो सतगुरू जाम्भाजी।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। २ ।।

त्रेतायुग में सीता कारण लंका आप पधारयाजी,
सीताजी ने जाकर दर्षन दीन्हो सतगुरू जाम्भाजी ।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। ३ ।।

द्वापार युग में रूक्मणी री प्रीत पूरबली पालीजी ,
टपने करसूं रथ में बैठाई सतगुरू जाम्भाजी ।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। ४ ।।

काढी होतो जैसलमेर रो जेतसिंह महाराजाजी,
राजाजी रे तन री कोढ झाडी सतगुरू जाम्भाजी ।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। ५ ।।

भगवी टोपी भगवों चोलो प्यारो म्हाने लागेजी,
सारां ही भगता ने संग लाज्यो जाम्भाजी ।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। ६ ।।

तू ही रामा तूं ही कृश्णा तुं ही मोहन गिरधारी ,
तूं ही सुरजाराम ने बिसारियों मत ना जाम्भाजी ।
म्हारी जागण में थाने आया ही सरे ।। ७ ।।

भजन २
ठूमक-ठूमक देखो आवे जाम्भराज,
हंसा जो मगन भई देख्यो ऐसा साज ।
आगे-आगे गऊआं चाले पीछे चाले ग्वाल,
सारां बहच चाले हंसा लोहटजी रो लाल ।। १ ।।

आवत देखी गऊआं नगर की नारख्
हंसा आगे सखियां करे पुकार ।। २ ।।

सिर पे सुहावे टोपी गले काली माल,
कान्धे धर गेडी ख्सले अद्भत चाल ।। ३ ।।

बोले नहीं मुखडै सूं करे सब काज,
लीला ज्यांरी लखी नहीं पीपासर समाज ।। ४ ।।

पूर्ण ब्रह्म रूप धार लियो भेश,
पार नहीं पावे ब्रह्मा विश्णु महेष ।। ५ ।।

ओही लोहट सुत ओहो कृश्णमुरार,
सेवक आल्म गुण रहयो उचार ।। ६ ।।

भजन ३
जम्भेश्वर भगवान म्हाने दर्षन दो नी आय ।
म्हारी भरी सभा में आवोजी जम्भेष्वर भगवान ।। टेर ।।

दिल्ली षहर में आप पधारे, थक्त प्रीत पहचान ।
हासम कासम का बंधन छुडाया, गऊ की बचाई जानन ।। १ ।।

सैंसे के घर आप पधारे, अन्न का मांग्या दान ।
गरम हुई सैंसे की नारी, पतरी दीनी भान ।। २ ।।

नौरंगी रा भरियो मायरी रोटू नगर रै मायं ।
रथ सूं नीचा आप उतरिया , पत्थर मंडियो पावं ।। ३ ।।

जम्भेश्वर के नाम बिना, झूठौ जग संसार ।
शंकर प्रातप गुरूजी के षरणे, दो भक्ति वरदान ।। ४ ।।

भजन ४
मेरे सतगुरू की बलिहारी, मैं हुं षरणागत थारी
थे सुणो बिणती म्हारी हों तपधारी ।
ये लोहट के घर आए, हंसा ने गोद खिलाऐ ।
सखियों ने मंगल गाए हो तपधारी ।
नौरंगी को भात भरायो, रोटू में वीरों गवायो ।
पल भर में बाग लगाये, हो तपधारी ।
जैसलमेर के राजा, जेतसिंह महाराजा।
कोढ बदन भये ताजा हो तपधारी ।
दूदे ने राज दिलाये खांडे पे धूप खिवायो ।
चरू हीरा रा पाया, हो तपधारी ।
सिकन्दर लोदी को झुकाया, हासम कासम को छुडाया ।
मरती गऊ बचाई , हो तपधारी ।
पूल्हे ने पाहल पिलायो, बीदा ने विराट दिखयो ।
सैंसे भक्त को तारयो, हो तपधारी ।
जम्भेष्वर दीन दयाल , खोलो बन्दी का ताला ।
समराथल धोरे वाला, हो तपधारी ।
भजन 5
म्हाने आछा लागे महाराज दरसण जाम्भेजी रा
म्हाने प्यारा लागे गुरूदेव दरसण जाम्भेजी रा ।। टेर ।।

जे जन धुन सबदारी सुणिये घट परमल की बास
छरसण जाम्भेजी रा ।। १ ।।

चहुं दिस सन्मुख पीइ नहीं दरसे क्रोड भाण परकाष
दरसण जाम्भेजी रा ।। २ ।।

चालत खोज खेह नहीं दिसे तन छांय
दरसण जाम्भेजी रा ।। ३ ।।

भगवीं टोपी भगवों चोलो भलो सुरंगो भेश
दरसण जाम्भेजी रा ।। ४ ।।

समराथल पर आसण लगाये दिया सबदारां उपदेष
दरसण जाम्भेजी रा ।। ५ ।।

भजन ६
श्री जम्भेष्वरजी अरज सुणो मैं दर्षन करने आया हूं ।।टेर।।

भगवीं टोपी गेरूओं चोलो अद्रभूत रूप बणाया जी ।
पेट पीठ कछु दीखे नाहीं सबके सम्मुख सुहाया जी ।।१।।

ना कुछ खावो न कुछ पीओ दिन-दिन दिखो सवाया जी ।
तन की ऐसी खुषबू आवे चन्दन का पेड लगाया जी ।।२।।

चालत धरती पाव ना टेको न दीखे तन छाया जी ।
चारो दिष में फिरकर देखा थांरा रूप समाया जी ।।३।।

फोग कंकेडी का बाग लगाया बीच में जाला सुहाया जी ।
नचे मोर परेवा बोले कैसा खेल रचाया जी ।।४।।

जीवन मुक्ति का मार्ग बाताया सबही के मन जी ।
गुरूदेव ने खडग चलाया ‘सीताराम’ गुण गाया जी ।।५।।

भजन ७
अमरलोक सूं म्हारा जाम्भोजी पधारिया,घर लोहट अवतार लियो ।
सिरया झिमाबाई करे थारी आरती , चंवर डुलावे आलम सालम जीओ ।
सोनेरे सिहंसन माथे जाम्भोजी विराजीया, भगत उतारे थारी आरती जीओ ।

जींझा मजीरा थोर बाजे मन्दिंर में, झालर की झणकार जीओ ।
नौपत नगारा थारे गहरा-गहरा बाजे, षंख रा बाजे तुंताड जीओ ।

घिरत गुगल थारे चढे मिठाई,आवो कपूर महकार जीओ ।
प्रेमभाव से थाने मनावा, निवण करे नर नारी जीओ ।
खुलाथारा पडिया पोल दरवाजा, धोक लागावे नर नारी जीओ ।
केर कुमटिया चोखा घण लागे, और फोगां री झाड़ी जीओ ।
भजन ८
म्हाने जाम्भोजी दीयो उपदेष, भाग म्हारो जागियो,
मरूधर देष समराथल भूमि गुरूजी दियो उपदेष ।
पीपासर में प्रकट भया आय सुधारयो बागड देष ।।१।।

बीदे ने विराट दिखायो पुल्हे ने पाताल ,
उन्नतीस नियम सुणाय गुरूजी पायो म्हाने अमृत पाहल ।।२।।

सांगा राणा और नरेषां परच्यो महमद खान,
लोदी सिकन्दर ऐसो परच्यो पढणी छोड दी कुरान ।।३।।

चिम्पी चोलो उणरे तन रो पडियो जांगलु मांय,
चिम्पी चोले रा दरसण करस्यां न्हावाला बरसिंगाली जाय ।।४।।

मोखराम बंगांली वालो हरिचरणा लवलीन,
दास जाण म्हापे किरपा कीज्यो होऊ भक्ति में प्रवीण ।।५।।

भजन ९
तर्ज अब लोट के आजा मेरे मीत
अब दर्षन देओ जम्भदेव, भगत तेरे व्दार पे आये हैं ।।टेर।।

पन्द्रह सो और आठ में थे पींपासर आया ।
माता हंसा गोद खिलाया लोहट मन हर्शाया ।
रहे सात बर्श तक मौन, बाल लीला दिखाई है ।
अब दर्षन देओ.............।।१।।

दूदेजी ने खाण्डो दीन्हो राज मेडतो पायो ।
लोहटरी ने देख्यो अचम्भो आंगन जल बरसायो ।
वर्श बीस और सात , ग्वालों संग धेनु चराई है ।
अब दर्षन देओ.............।।२।।

पन्द्रह सो और साल बंयालेबिष्नोई पंथ चालायो ।
जात पांत रो भेद मिटाकर अमृत पाहल पिलायो ।
दीन्हो वर्श इक्यावन ग्यान , धर्म की धजा फहराई है ।
अब दर्षन देओ.............।।३।।

उमाबाई ले बत्तीसी , समराथल पर आई ।
रोटू गांव में बाग लगयो खेजडिया उगाई ।
भरयो ठाट-बाट सूं भात उमा ने बहन बणाई है ।
अब दर्षन देओ.............।।४।।

विश्णु-विश्णु तू भण रे प्राणी ओ ही मत्रं सीखायो ।
पन्द्रंह सो और साल तेणवे ज्योति रूप समायो ।
करे रामरतन गुणगान दर्षन की आष लगाई है ।
अब दर्षन देओ.............।।५।।

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