पाहल का महत्व

पाहल मंत्र
ओं नामो स्वामी शुभ करतार निर्तार |
भवतार, धर्मधार, पूर्व एक ओंकार ||
सधूना दर्शनम्पुन्यम, सन्मुखे पापनाशनम |
जन्म फिरंता को मिलै, संतोषी शुचियार ||
अपनो स्वार्थ ना करै, पर पिंड पोषणहार |
पर पिंडपोषणहार जीवत मरै, पावै मोक्ष द्वार ||
एहस पाहल भाईयो, साधे लिवी बिचार |
एहस पाहल भाईयो, थुले मेल्हि हार ||
एहस पाहल भाईयो, ऋषी सिद्धो के काज |
एहस पाहल भाईयो, उधारियो प्रल्हाद ||
तेतिश कोटि देवांकुली, लाधो पहल बन्द |
एहस पाहल भाईयो, उधारियो हरीचंद ||
पाहल लिन्हि कुंती माता, होती करनी सार |
साधु एहा भेटीया, मिल्‍यो मोक्ष को द्वार ||
आओ पाँचो पांडव, गुरु की पाहल मत ल्योह |
पाहल सार न जानहीँ, तिस पाहल मत द्योह ||
पाहल गति गंगा तनी, जेकर जानै कोय |
पाप शरीरा फड़ पड़े, पुन्य बहुतसा होय ||
नेम तलाई नेम जल, नेम का जीमे पाहल |
कायम राजा आएयो, बैठो पाँव पखाल ||
ऋषि थाप्या गति उधरे, देता दिए पाहल |
बन बन चंदन न अगरण, सर सर कमल न फूल ||
एका एकि होय जपो, ज्यो भागै भ्रमभूल |
अड़सठ तीर्थ काय फ़िरो, न ईन पाहलसम तूल ||
गोवल गोवल को धवल, सब सन्ता दातार |
विष्णु नाम सदा जीम, पाहल एह विचार ||
सदगुरु बोले भाईयो, संत सिद्ध शुचियार |
मत्स्य की पाहल, कुर्म की पाहल ||
बाराह की पाहल, बामन की पाहल |
नृसिँह की पाहल, परशुराम की पाहल ||
राम-लक्ष्मण की पाहल, कृष्ण की पाहल |
बुद्धा की पाहल, निष्लंक की पाहल ||
सर्वाधार सर्वशक्तिमान सर्वेश्वर, मेरे जम्बेश्वर की

प्रत्येक संस्कार एवं षुभ कार्य उत्सव जागरण गृह प्रवेश अमावस्या आदि अवसरों पर हवन का कार्यक्रम अवष्य ही रखा जाता है । हवन प्रारम्भ होने से पूर्व ही पूर्वोत्तर कोण में एक कलश कच्चा मिट्टी का बर्तन रखा जाता है। हवन होने के पष्चात गुरूजम्भेष्वर के बताये हुए मंत्र (कलश पूजा) से मंत्रित किया जाता हैं उसके बाद में पाहल मंत्र से पाहल किया जाता हैं पाहल कर्ता जो मंत्र उच्चारण करता है। उस मंत्र व्दारा कलश में स्थित जल में भावात्मक रूप से सृश्टी की उत्तम वस्तुओं को प्रवेश करवाता है। सर्वप्रथम पच्चभूतों की सृश्टि रची गयी थी, चूकि यह ब्रह्माण्ड भी गोल हैं कच्चा है। इसमे भरा हुआ जल ही है। इस जल में ही सभी देवता,मानव,नदी आदि उत्पन्न हुए है। यह सम्पूर्ण जल का ही पसारा है। सर्वप्रथम इस कलश रूपी ब्रह्माण्ड में जहा विश्णु भगवान षेश षैय्या पर सोए हुये है। वह आदि कुम्भ को पवित्र करें अमृतमय बना दें। उस आदि विश्णु के माता-पिता कुटुम्ब सहोदरम नही थे। वे अपने साथ क्रीडा करने के लिए अपने ही जैसी सुन्दर सृश्टी रची थी। वही सृश्टी ब्रह्मा, इन्द्र, षिव, रवि, चंद्र, तेतीस करोड देवी देवता,गंगा,यमुना,सरस्वती,बाल, निरंजन गोरख जति इत्यादी को भी साथ लेकर आऐ और हमारे इस कलश में प्रवेश करे। यह आपका क्रिडा स्थल बहुत ही सुन्दर हैं। वह आदि कुम्भ था उसके बाद में पुनःव्दितीय कुम्भ सत युग में प्रहलाद जी ने स्थापित किया था, जिससे पांच क्रोड, प्राणियों का उध्दार किया था। वही कुम्भ जल इसी में प्रवेश होवे। इसी प्रकार त्रेता युग में राजा हरिष्चन्द्र ने कलश स्थापना की थी । सत्य से अभिमंत्रित जल पीकर सात करोड प्राणियो का उध्दार किया था। व्दार युग में सत्यवादी धर्मराज सुधिश्ठिर ने कलश स्थापना की थी और नव करोड प्राणियों का उध्दार किया था वही इस कलश में स्थापित होवे। इसी परम्परा में गुरू जम्भेष्वर जी ने वही कलश स्थापित करके पाहल देकर बारह करोड प्राणियों का उध्दार किया । पाहल कर्ता भी यह कामना करता है । जैसा परम्परा से एक कलश से दुसरे में उतरोत्तर उन तत्वों का आगमन होता रहा है। ठीक वैसा ही इस कलश में भी उन तत्वोंका आगमन होवे । जिससे यह जल शक्ती समृध्दिवान बने । इसकी ग्रहण करणे वाला भी वैसा ही अपने पूर्वजों की तरह सर्वगुण सम्पन्न हो। समाज के श्रेष्ठ पुरुश का कलश ऊपर माला, ताबे के टके सहित हाथ रखा कर यह सत्य संकल्प किया जाता हैं। तत्पष्यात प्रभु नाम स्मरणी माला की जल में घूमाकर पाहल किया जाता है। पाहल मंत्र व्दारा यह भावना की जाती है कि जिस प्रकार से प्राचीनकाल में इसी पाहल को लेकर जिस प्रकार से ऋशी , महात्मा, साधु, पांच पांडव, कुन्ती आदि में अपनी-अपनी सिध्दी को प्राप्त किया, उन्होंने पाहल के सार को समझा था। उसी प्रकार से हम भी सिध्दी को प्राप्त करे। अपनी इच्छित वस्तु प्राप्त करें । जिससे मानव कल्याण मार्ग सुलभ हो सके। जिसके बल से नव अवतारों ने अपनी शक्ति संदधन करके काय्र सिध्द किया। उसी प्रकार हम भी सुख षांति सफलता प्राप्त करे। वही यह पाहल है। जिसमें नव अवतार शक्ति प्रदान करें। मंत्रों में अथाद्य शक्ति होती हैं। किन्तु मंत्र साधक वास्तव में होना चाहिए। एक साधरण मंत्र जिससे वर्तमान में प्रत्यक्श करामात देखा जा सकता हैं। जैसे बिच्छु,सांप,जादु, आदि अनेको मंत्र है। इसका प्रभाव काम नहीं होगा। श्रध्दा विष्वास की आवष्यकता है। पाहल कर्ता भी आचार विचारवान सात्विक साधक हो । पूरे विधि विधान प्रेम पुर्वक सही ढग से उच्चारण करने वाला होना आवष्यक है। बिना श्रध्दा विष्वास जैस-तैसे किया हुआ कार्य निश्फल होता है। " पाल " अर्थात् पानी रोकने का बांध। जब तक यह पाल अडिग रहेगा, तब तक आपको नदी तूफान से कोई खतरा नही हैं। जब पाल में छोटा सा भी छेद हो बया तो सम्पुर्ण पाल बह जायेगी। डूब जाओंगे बच नही सकोंगे यही बचने का एकमात्र उपाय है। अर्थात सासांरिक तूफान जो समय-समय पर आते रहते है। जैसे अमल,तामखू,भांग, मांस, मद्य इत्यादी ये भयंकर तूफान है। इससे पाल ही रक्षा कर सकती हैं। पाहल जल हाथ में लेकर यह प्रण किया जाता हैं। कि मैं अपने नियमों में अडिग रहुंगा। इस प्राण को " पाल को " तोडूंगा नही। जरा भी छेद होने नहीं दुंगा। यह प्रण ही मानव की रक्षा करता है, एक बार टूटा कि भयंकर बाढ आ जाती है। फिर उसे रोकना असम्भव हो जाता है। अपने अवगुन छोडणे का प्रयत्न करें तों अवष्यही सफलता मिलेगी। परमात्मा शक्ति प्रदान करेगे। हमारी यह पाहल गौरवमयी है। केवल हम ही ऐसे है। जो इसको नहीं समझ पा रहे हैं। हमारा इतिहास इस बात का साक्षी है। कोई भी संकल्प लिया जाता है। तो हाथ में जल ले कर। यह पाहल लेकर पुनःभूल न करने का संकलप लेता है। बिना पाहल ग्रहण किये बिशनोई होने की कल्पना भी नहीं की ला सकती । जब-जब भी अषुध्दि होती है। तब-तब हवन पाहल व्दारा षुध्द किया जाता है। हवन ओर पाहल दोनों का अटूट जोडा है। प्रत्येक संस्कार में पाहल लेना अति आवष्यक है तथा हवन करना भी उतना ही जरूरी है।
 

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