त्र् गुरू महाराज जब अन्तर्ध्यान होने लगे तब भगतों-सन्तों ने पूछा गुरूदेव अब आपके दर्शन हमें कहॉं होंगे तब गुरूदेव नें कहां हवन में तथा जोत में। अतः हम बिशनोईजन हवन पर या जोत के सामने नंगे सिर न जायें, यह हामारी सभ्यता एवं संस्कृति के विपरीत होने के अतिरीक्त गुरू जी का अपमान भी है। हमें अपने सिर पर पगडी, साफा, टोपी, अंगोछा या रूमाल रखकर हवन पर बैठना या जोत के सामने जाना चाहिए। महिलाओं को अपने ओढने, चून्दडी, दुपट्टा या साडी सिर पर रखनी चाहिए। बच्चों के सिर पर रूमाल या टोपी रखनी चाहिए।
त्र् प्रायः लेखक गुरू जी का नाम केवल जाम्भोजी या जम्भेष्वर लिखते हैं जो उचित नहीं है। अनके नाम से पूर्व आदर सुचक शब्द ‘‘गुरू’’ अवष्य लिखें। सिख लोग अपने गुरू की संख्या के साथ पादषाही जैसे पांचवी पादषाही या नाम से पूर्व गुरू शब्द का प्रयोग करते हैं।
त्र् जितने बिशनोई मन्दिर हैं उनके नाम से पहले श्री शब्द प्रयोग करें जो सम्मान सूचक है जैसे श्री बिशनोई मन्दिर हिसार/अबोहर आदि।
त्र् छोटे बच्चों में संस्कार डालें ताकि वे बचपन से ही उपरोक्त संस्कारों को अपना सकें। यह माता-पिता का दायित्व है।
निवेदक: मनीराम बिशनोई , एडवोकेट 190, सैक्टर -15ए, हिसार 125001
‘ रे मन मूरख ’
रे मन मूरख ! अहंकार करे क्यों इतना फुल रहा, तेरा सारा चिन्तन तेरे जीवन के प्रतिकुल रहा । विश्णु के अवतार राम हैं। उनको मनुज बताता हैं पुश्पवाण घाटी अनंग को धनुघाटी बतलाता है। कामधेनु को पषु बताता। गंगा जी को एक नदी, कल्पवृक्श कोई पेड नहीं, अन्नदाता हैं, दान नहीं । अमृत को तू रस कहता हैं गरूडराज क्या पक्षी हैं? बैकुण्ठ धाम को लोक समझता प्रभुभक्ति है, रे मतिमन्द ! तुम्हारा जग में हो सकता कल्याण नहीं। ये अज्ञान तुम्हारा मन में गढता जैसे षूल रहा । रे मन मूरख! अहंकार करके क्यों इतना फूल रहा है।
आवश्यक निर्देश
त्र् जब एक बिशनोई दूसरे बिशनोईसे मिले तो उसे ‘‘ नमन प्रणाम " कहकर अभिवादन करे तथा दूसरे बिशनोईको उत्तर में ‘गुरू जाब्मोजी को, विश्णु को कहना चाहिए। सह हमारे गुरू जी व्दारा आरम्भ की गई परम्परा हैं जिसका हमें पालन करना चाहिए। अन्य लोगां से चाहे राम - राम, जय राम मी की, नमस्ते, नमस्कार, सत श्री अकाल, सलाम, वेल्कम या गुड मोर्निंग/इवनिंग कहें।त्र् गुरू महाराज जब अन्तर्ध्यान होने लगे तब भगतों-सन्तों ने पूछा गुरूदेव अब आपके दर्शन हमें कहॉं होंगे तब गुरूदेव नें कहां हवन में तथा जोत में। अतः हम बिशनोईजन हवन पर या जोत के सामने नंगे सिर न जायें, यह हामारी सभ्यता एवं संस्कृति के विपरीत होने के अतिरीक्त गुरू जी का अपमान भी है। हमें अपने सिर पर पगडी, साफा, टोपी, अंगोछा या रूमाल रखकर हवन पर बैठना या जोत के सामने जाना चाहिए। महिलाओं को अपने ओढने, चून्दडी, दुपट्टा या साडी सिर पर रखनी चाहिए। बच्चों के सिर पर रूमाल या टोपी रखनी चाहिए।
त्र् प्रायः लेखक गुरू जी का नाम केवल जाम्भोजी या जम्भेष्वर लिखते हैं जो उचित नहीं है। अनके नाम से पूर्व आदर सुचक शब्द ‘‘गुरू’’ अवष्य लिखें। सिख लोग अपने गुरू की संख्या के साथ पादषाही जैसे पांचवी पादषाही या नाम से पूर्व गुरू शब्द का प्रयोग करते हैं।
त्र् जितने बिशनोई मन्दिर हैं उनके नाम से पहले श्री शब्द प्रयोग करें जो सम्मान सूचक है जैसे श्री बिशनोई मन्दिर हिसार/अबोहर आदि।
त्र् छोटे बच्चों में संस्कार डालें ताकि वे बचपन से ही उपरोक्त संस्कारों को अपना सकें। यह माता-पिता का दायित्व है।
निवेदक: मनीराम बिशनोई , एडवोकेट 190, सैक्टर -15ए, हिसार 125001
‘ रे मन मूरख ’
रे मन मूरख ! अहंकार करे क्यों इतना फुल रहा, तेरा सारा चिन्तन तेरे जीवन के प्रतिकुल रहा । विश्णु के अवतार राम हैं। उनको मनुज बताता हैं पुश्पवाण घाटी अनंग को धनुघाटी बतलाता है। कामधेनु को पषु बताता। गंगा जी को एक नदी, कल्पवृक्श कोई पेड नहीं, अन्नदाता हैं, दान नहीं । अमृत को तू रस कहता हैं गरूडराज क्या पक्षी हैं? बैकुण्ठ धाम को लोक समझता प्रभुभक्ति है, रे मतिमन्द ! तुम्हारा जग में हो सकता कल्याण नहीं। ये अज्ञान तुम्हारा मन में गढता जैसे षूल रहा । रे मन मूरख! अहंकार करके क्यों इतना फूल रहा है।